ख़ामोशी
एक ख़ामोशी शोर कर रही हैं
अंदर ही अंदर गुंज कर
ऐसी बह रही है
ना बहस है ना जोर है
बिना लफ्जो का ये
जाना माना शोर हैं
बिन लफ्जो की ये गुफ्तगू
कुछ कह रही है मुझ से
ये दास्ताँ बीते लम्हों की
आने वाले कल की
बीत गए दिनों की
एक ख़ामोशी
गुंजर ही है अंदर ही अंदर
ये खामोशी कुछ अपनो की !!!!
कैसे बताएं क्या समझाए
बयां किस अंदाज़ में की जाएं
कि बिन शोर के ये शोरगुल
दिलों से गुम हो जाए
पर आखिर?
किन लफ्जो के दरमियान
किस लम्हे में इस खामोशी की गुफ्तगू
शुरू हो जाए!!!!
बस यही खामोशी गुंज रही हैं
अंदर ही अंदर
कुछ जाना पहचाना
शोर कर रही हैं
ये जानी पहचानी
खामोशी गुंज रही हैं
अंदर ही अंदर
शोर कर रही हैं
शोर कर रही हैं
शोर कर रही है !!!!!!
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