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रास

  

रास

 

अलबेली लता उपजी उपवन में

नव रंग नव कली संग मे

महक रही उदयाचल से

अस्ताचल तक पुरे गगन में

 

कुछ रंग यौवन के उभर उठे

सावन के आरंभ प्रारंभ में

कुसूमती कलियाँ इठलाए अब

रिझाए मेघ को सुने गगन में

 

भंवरे भी भिन्न भिना उठे

ऐसा रूप अनोखा छाया

चूस लिया कली का रस

ऐसा प्रेम रास रचाया

 

खिलकर कलियाँ फुल हो गई

अब उपवन पुरा महकाया

और तड़पाया बादल को

ऐसा सौंदर्य दिखलाया

 

आँचल छोड़कर ग्रीष्म ऋतू का

सावन के बादल लहराकर आए

बांध सब्र का तोड़कर

 बूंदों के बाण चलाए

पर बुझे ना बुझे प्यास ऐसी

फूलो के मन में बढ़ती जाएं

 

दहलीज लाँघकर सावन कि

भादो के बादल भी गरजकर आए

ऐसे करतब दिखाएं

कि मुरझाई कली – फुल भी

कुछ पल मे मुस्काए

 

महक उठा उपवन उपवन

ऐसा सौंदर्य खिलाया बादल ने

भवरों के रस भंडार का

मार्ग खोला कुछ पल मे

 बड़ा अदभुत सौंदर्य उपवन में

अलबेली लता शर्माए

इतने सारे फुल खिले

धरा आंचल में झुकती जाए

बहती मदमस्त पवन में

आंचल मंद मंद लहराए

और अब मन मन मुस्काए

मन मन मुस्काए

मन मन मुस्काए !!!!

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